नाकोड़ा तीर्थोद्दारिका प्रवर्त्तियों साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने वि.सं. 1960 में जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ का जीर्णोद्दार आरम्भ करवाया। जीर्णोद्दार के लिये धन एकत्रित करने हेतु साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने मालाणी, गोड़वाड़, सिवान्ची, अड़तालीसी आदि क्षेत्रों में धर्मोपदेश दिया। इस दौरान आपने वि.सं. 1962 (सन् 1905) का चातुर्मास बाड़मेर में किया। नाकोड़ा तीर्थ में उन दिनों यहाँ की प्रतिमाओं के प्रक्षालण के लिये दूध का अभाव था। इस समस्या को दूर करने के लिये आपने बाड़मेर में उपदेश देकर जैन श्रीसंघ एवं दानदाताओं से कुछ गाये प्राप्त कर नाकोड़ा भिजवाई। तब से यहाँ प्रारम्भिक स्तर के रूप में गौशाला में प्रतिष्ठित प्रतिमाओं के प्रक्षालण हेतु गाये थी। लेकिन इसकी आवश्यकता को देखने हुए तीर्थ वि.सं. 2007 (सन् 1950) में श्री आदेश्वर भवन वाले स्थान पर व्यवस्थित रूप से गौशाला आरम्भ कर दी। जब यहाँ यात्रियों की सुविधा हेतु श्री आदेश्वर भवन बनाया गया तब वि.सं. 2047 (सन् 1990) में यहाँ से वर्तमान में बने श्री पार्श्वयात्री भवन वाले स्थान पर स्थानान्तरित कर दिया। यहाँ श्री पार्श्वयात्री भवन वि.सं. 2051 (सन् 1994) में बनकर तैयार हुआ तब इससे कुछ समय पहले इस गौशाला को नाकोड़ा - जसोल सड़क मार्ग पर तीर्थ की पुरानी प्याऊ के पास विशाल भू-खण्ड पर स्थानान्तरित कर दिया है। इस गौशाला में पक्के चारा भंडार, छाया सेड़, चारा चरने के स्थान, पीने के पानी की व्यवस्था, कर्मचारियों, ग्वालो आदि के आवास आदि कई प्रकार की ईमारते बनी हुई है। सम्पूर्ण गौशाला के चारो तरफ पक्की दिवार बनाकर उसके आंतरिक भाग में पेड़ भी लगाये गये है।

 

 

नाकोड़ा तीर्थ द्दारा संचालित श्री नाकोड़ा भैरव गौशाला में गोधन विद्यमान है। जिनमें प्राप्त दूध का उपयोग तीर्थ में मूर्तियों के पक्षालण, ज्ञानशाला के छात्रों, भोजनशाला आदि में किया जाता है। तीर्थ द्दारा जीवदया के रूप में स्वयं द्दारा गौशाला चलाने के अतिरिक्त प्राकृतिक प्रकोप, अकाल के दिनों में पशु शिविर संचालित किये जाते रहे है। प्रदेश की कई गौशालाओ को भरपूर आर्थिक मदद भी दी जाती रही है। पक्षियो के लिये दाने की व्यवस्था भी तीर्थ की तरफ से होती रहती है।

 

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