जैन तीर्थ नाकोड़ा का स्मरण करते ही यहाँ के समकितधारी चमत्कारी अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी का स्वतः ही स्मरण होने लगता है। जिनके दैविय चमत्कारों के कारण यहां दर्शनार्थियो की भीड़ लगी रहती है। जैन धर्मावलम्बियों के अतिरिक्त अजैन श्रद्वालू भक्तगण भी चमत्कारी श्री भैरवदेवजी के दर्शन करने बड़ी संख्या में आते है। अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी की अन्तर्मन से आराधना - उपासना - भक्ति करने पर इनके चमत्कारों से भक्तों को सुख-सम्पति, यश कीर्ति, मान-प्रतिष्ठा आदि मिलती है। वहां दुःख - दर्द, कष्ट, विघ्न, आधि-व्याधि, संकट, मुसीबत, आपदा-विपदा, दरिद्रता, गरीबी, शारीरिक मानसिक पीड़ा, भूत - प्रेतों से मुक्ति, गृहों के कोप से मुक्ति मिलती है। ऐसे दैविय चमत्कारों के कारण ही श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा भक्ति बढ़ी है। परिणाम स्वरूप प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भक्तगण दर्शन करने जैन तीर्थ नाकोड़ा की यात्रा पर आते है।

 

नाकोड़ा जैन तीर्थ के मुख्य श्री पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर के गूढ़ मण्डप के दाहिनी ओर संगमरमर की बनी छतरी में समकितधारी श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह इस तीर्थ के रक्षकदेव है। जब से नाकोड़ा तीर्थ की तीसरी शताब्दी में स्थापना हुई थी तब से श्री भैरवदेव जी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से इस तीर्थ की रक्षा करते रहे है। जब वि.सं. 1280 में बादशाह आलमशाह ने वीरमपुर (मह्रेवा-नाकोड़ा-नगर-मेवानगर से परिचायक) पर आक्रमण कर जैन आदि मंदिरों को नष्ट किया, उस समय जैन मूर्तियों को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए उन्हें नाकोड़ा गाँव (नाकोरनगर) के नागद्रह तालाब में छिपाया गया। लम्बे अंतराल के बाद शांति होने पर वि.सं. 1426 में अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी के स्वप्न संकेत से जैन तीर्थन्कर श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा प्रकट हुई और वीरमपुर नाकोड़ा पार्श्वनाथ नाम से परिचायक बना।

 

वि.सं. 1443 में जब अजमेर के मुगल बादशाह बाबाशाह (बाबीजान) ने नाकोड़ा (वीरमपुर) पर आक्रमण किया तब बादशाह की फौजो को श्री भैरवदेवजी ने अपने भंवरों का झुंड भेजकर उन्हें भगा दिया। फौजे तो चली गई लेकिन लोगों को बादशाह का भय होने पर जैन मंदिर की प्रतिमाओं को बचाने के लिये पुनः नाकोड़ा गांव के कालीद्रह (नागद्रह) तालाब में छिपाया गया। कुछ समय बाद श्री भैरवदेवजी ने श्रावक जिनदत्त को स्वप्न देकर तालाब में छिपी श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा को प्रकट किया। इस प्रतिमा को आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरीजी अपने सिर पर उठाकर वीरमपुर (नाकोड़ा) में लाकर पुनः प्रतिष्ठित किया। उस समय स्वयं श्री भैरवदेवजी मूर्ति के आगे बाल रूप धारण कर नृत्य करते हुए आये।

 

आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरीजी ने श्री भैरव देव जी को नाकोड़ा के श्री पार्श्वनाथ मंदिर के द्वार के बाहर एक गोख में स्पूत के रूप मे विराजमान कर दिया। यह समय वि.सं. 1512 का था। उसके बाद से श्री भैरव देवजी की नाकोड़ा में सदैव पूजा अर्चना होती रही और श्रद्वालू भक्त इनके स्तूप के सामने बैठकर आराधना-उपासना - भक्ति करते रहते थे। जिससे कई लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती रही। श्री भैरवदेवजी के स्वप्न चमत्कार से संखलेचा गोत्र के सेठ मालाशाह ने अपनी माता की इच्छा से नाकोड़ा तीर्थ में श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर बनाया। श्री भैरवदेव जी के आदेश पर जोधपुर के यति श्री जवाहरमलजी ने पोष वदी दशमी मेले का शुभारम्भ किया।

 

जब सत्तरहवी शताब्दी में स्थानीय शासक पुत्र के बाद नानगसेठ यहां से जैन श्री संघ के साथ तीर्थ यात्रा का बहाना बना कर नाकोड़ा छोड़कर जैसलमेर चले गये। तब नाकोड़ा तीर्थ उजड़ गया। बिना देखभाल के यहां के जैन मंदिर जीर्ण - शीर्ण हो गये। लम्बे समय तक ऐसी स्थिति के कारण नाकोड़ा तीर्थ का नामोनिशान ही मिटने लगा। तब वि.सं. 1958 में नाकोड़ा के श्री भैरवदेवजी ने जैन प्रवर्तिनी साध्वी श्री सुन्दर श्रीजी को स्वप्न में नाकोड़ा तीर्थ के दर्शन करने के साथ जीर्णोद्धार करने का संकेत दिया। साध्वी श्री सुन्दर श्रीजी नाकोड़ा पधारी और तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया। उस समय श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी के कई चमत्कार साध्वी श्री जी को मिले। साध्वीजी ने मंदिर के बाहर बने श्री भैरवदेवजी के स्तूप का उत्थापन कर उसे श्री पार्श्वनाथजी के मंदिर में स्थापित कर दिया।

 

श्री पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर में जहाँ श्री भैरवदेव जी का स्तूप स्थापित किया था उस जगह मूर्ति बनाकर प्रतिष्ठित करने का संकेत अनुयोगाचार्य प्रन्यास श्री हिम्मतविजयजी (आचार्य श्री हिमाचलसूरीजी) को श्री भैरवदेवजी ने स्वप्न संकेत दिया। प्रन्यास श्री हिम्मतविजय जी ने वि.सं. 1990 में सुश्रावक श्री भीमाजी देवाजी व सोमपुरा श्री किस्तुरजी के सहयोग से पिण्डाकार श्री भैरवदेवजी पर मूर्ति स्वरूप प्रदान किया। जिसकी प्रतिष्ठा भी आपने वि.सं. 1991 माघ शुक्ला 13 को करवाई। तब से श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी का वर्तमान स्वरूप जन - जन की आस्था बन गया है।

 

श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी की पीले पाषाण की मूर्ति को देखकर भक्तगण घंटो तक दर्शन करते हुए भी थकता नहीं है। अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी के दैवीय चमत्कारों के कारण इनके प्रति जन - जन की आस्था, विश्वास एवं भक्ति बढने लगी है। इतना ही नहीं अब देशभर में बनने वाले नये जैन मंदिरों एवं पुराने मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाने के बाद उनकी प्रतिष्ठा करने पर श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी की मूर्ति स्थापित होने लगी है। श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी से अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिये श्रद्धालू भक्तगण तेल चढाने के साथ प्रसादी भी चढाते है। श्री नाकोड़ा भैरवदेवजी को चढाई जाने वाली प्रसादी का उपयोग मंदिर परिसर एवं सीमा में उसी दिन करना लाभदायक एवं शुभ माना जाता है। नाकोड़ा जैन तीर्थ के अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी के चमत्कारों से लाभान्वित होकर असंख्य लोग दर्शन करने यहाँ आते है।