नाकोड़ा जैन तीर्थ के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान मंदिर के दक्षिण की तरफ बने श्री सांवलिया पार्श्वनाथजी मंदिर की प्राचीर के पीछे एवं वर्तमान तीर्थ के मोदी खाने के समीप श्री रणछोड़रायजी (श्री चारभुजाजी) का पूर्वाभिमुख प्राचीन मंदिर बना हुआ है। जिसका निर्माण वि.सं. 1886 चैत्र वदी 7 मंगलवार 22 फरवरी 1630 में राठौड़ श्री भारमलजी ने अपने परिवार के कल्याणार्थ एवं परमेश्वर भक्ति के लिये करवाया था। जो जैन तीर्थ नाकोड़ा के उजड़ने के साथ यह भी काल के थपेड़े सहता रहा। जब नाकोड़ा तीर्थ का साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने जीर्णोद्धार करवाकर इसकी वि.सं. 1991 में प्रतिष्ठा करवाई तथा भगवान श्री रणछोड़रायजी का मंदिर आज धार्मिक समन्वय का प्रतीक बना हुआ है। इस मंदिर में मूलनायक के रूप में श्री रणछोड़राय भगवान की चारभुजा वाली अत्यन्त ही सुन्दर एवं मनभावन श्वेत संगमरमर के पाषाण की बनी प्रतिमा प्रतिष्ठित है। जिसके आजू - बाजू भी श्री रणछोड़रायजी भगवान की छोटी - छोटी प्रतिमा के साथ श्री रणछोड़राय - राधिकाजी एवं श्री राधिकाजी की प्रतिमा दर्शन हेतु विद्यमान हैं। इस मंदिर के मूल गम्भारे के बाहर गुढ़ मंडप में श्री गणेश जी एवं श्री हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है और पास ही धार्मिक पूजा हेतु पीपल व तुलसी के वृक्ष भी हैं।

 

इस मंदिर के मूलगम्भारे के प्रवेश द्वार के ऊपर मंदिर निर्माण सम्बंधी शिलालेख के साथ राठौड़ राव सिंहाजी से लेकर राउल भारमल तक की वंशावली नवपंक्तियों में कुरेदी हुई है। वहाँ मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहरी प्राचीर के एक गोख में श्री शीतला माताजी की गईभ वाहन के साथ श्यामवर्णी मूर्ति भी स्थापित हैं। नाकोड़ा के इस श्री रणछोड़रायजी के प्राचीन मंदिर की सम्पूर्ण रूप से देखभाल, रखरखाव, सेवा पूजा आदि श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट मण्डल मेवानगर (नाकोड़ा) की तरफ से वर्षों से की जा रही है। श्री रणछोड़राय जी के दर्शन वन्दन, पूजा - अर्चना करने के लिये जनसमुदाय का बराबर आगमन होता है और धार्मिक त्यौहारों पर श्री रणछोड़राय भगवान की प्रतिमा पर तीर्थ ट्रस्ट मण्डल द्वारा श्रृंगार करवाया जाता रहता है।