नाकोड़ा जैन तीर्थ की मुख्य प्रवेश द्वार सूरजपोल के ठीक सामने पूर्व की ऊँची भाखरी की टेकड़ी (चोटी) पर दादाश्री जिनदत्तसूरिजी की दादावाड़ी बनी हुई है। इस दादावाड़ी का पूर्व में वि.सं. 2000 में सिवाना (बाड़मेर) के उम्मेदपुरा जैन श्रीसंघ ने साधारण सालनुमा कक्ष के रूप में निर्माण करवाया था। जिसमें दादाश्री जिनदत्तसूरिजी सहित अन्य तीन दादाओं में मणिधारी दादाश्री जिनदत्तसूरिजी, दादाश्री जिनकुशलसूरिजी एवं दादाश्री जिनचन्द्रसूरिजी के चरण पादुकाओं की श्री जिनजयसागरसूरीश्वरजी के नेतृत्व में बाड़मेर के ज्योतिष शास्त्र के विद्वान यतिवर्य श्री नेमिनाथजी ने वि.सं. 2000 वैशाख शुक्ला 6 को प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई।

 

तीर्थ पर बनी दादाश्री जिनदत्तसूरि जी की प्राचीन दादावाड़ी सम्पूर्ण संगमरमर के श्वेत पाषाणों से बनाया गया हैं। इस बारह स्तम्भों वाली दादावाड़ी के मध्य भाग में दादाजी की छतरी बनी हुई है, जिसमें चारों दादाओं की चरण पादुकाएं दर्शनीय, वन्दनीय प्रतिष्ठित है। इस दादावाड़ी के मूल गम्भारा परिसर में दक्षिण प्राचीर के एक कक्ष में श्री राता भैरवदेवजी की खड़ी प्रतिमा प्रतिष्ठित की हुई है। यह प्रतिमा लाल रंग की होने के कारण लोग इसे श्रद्धा के साथ ‘श्री रातिया भैरवजी’ के नाम से सम्बोधित करते है। इस श्री भैरवदेवजी की प्रतिमा के नीचे श्वान (कुत्ते) की आकृति बनी हुई है।

 

दादाश्री जिनदत्तसूरिजी की दादावाडी के दर्शन करने के लिये तीर्थ के पूर्व पहाड़ी के नीचे बने दादाश्री जिनदत्तसूरिजी द्वार में प्रवेश करने के बाद 134 पक्की सीढियाँ चढने के बाद दादावाड़ी में पहुँचा जाता है। इन सीढियों के मध्य भाग में एक ऊँची पहाड़ी टेकरी पर ‘मंगल कलश’ का निर्माण किया हुआ है। दादाश्री जिनदत्तसूरिजी की दादावाडी परिसर में खड़े होकर सम्पूर्ण नाकोड़ा तीर्थ का विहंगम दृश्य के साथ जसोल - बालोतरा सड़क मार्ग पर बने धार्मिक स्थलों के दर्शन होते है। इस दादावाड़ी के नीचे पूर्व की ओर तीर्थ के प्राचीन खण्डरनुमा मंदिर भी पहाडी पर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में दिखाई देता है।