श्री आदिनाथ मंदिर एवं श्री पुण्डरीक स्वामी मंदिर के बीच बनी छः चौकी मंडप के पश्चिम की तरफ श्री नाकोड़ा जैन तीर्थ का उन्नीसवे तीर्थन्कर श्री मल्लीनाथजी का चौमुखी मंदिर आया हुआ है। इस मंदिर के निर्माण से अब तक श्री मल्लीनाथ भगवान मूलनायक रहने के कारण यह ‘श्री मल्लीनाथ जैन मंदिर’ के रूप मे परिचायक रहा है। जब भारत पाक विभाजन के समय पाकिस्तान क्षेत्र में आई जैन बस्तियों में सिन्ध हाला मुल्तान आदि से जैन प्रतिमाए जब भारत में सुरक्षित लाई गई तब उन्हे इस मंदिर में मेहमान स्वरूप विराजमान किया। तब से यह ‘हाला वाला चौमुखी जैन मंदिर’ के नाम से पहचाना जाने लगा है।

 

पूर्वाभिमुख बने इस मंदिर के मध्यभाग में चौमुख शिखरवाली छतरी बनी हुई है। जिसमें वि.सं. 2016 में आचार्य श्रीमद्विजय हिमाचलसूरीश्वरजी ने पन्यास प्रवर श्री कल्याणविजयजी द्वारा समय चार श्री आदिनाथजी, श्री अजीतनाथजी, श्री शांतिनाथजी एवं श्री श्रेयांसनाथजी की वि.सं. 2005 माघ शुक्ल 5 को अंजनशलाका की हुई प्रतिमाओं को यहां चौमुख छतरी में प्रतिष्ठित किया। तबसे यह मंदिर श्री चौमुखी मंदिर एवं श्री ऋषभदेव चौमुखी मंदिर से सम्बोधित किया जाने लगा है। इस चौमुखी मंदिर में पूर्व से दक्षिण, पश्चिम, उत्तर एवं पुनः पूर्व की पावट पर तैंतीस जैन तीर्थन्कर प्रतिमाएं एवं दो चरण पादुकाए प्रतिष्ठित है। जिसमें से मंदिर के मुख पश्चिमी पावट पर पूर्वाभिमुख जैन प्रतिमाओ के बीच मूलनायक के रूप में श्री मल्लीनाथजी की प्रतिमा प्रतिष्ठित होने के कारण यह मंदिर ‘श्री मल्लीनाथ जैन मंदिर’ के नाम से अपनी पहचान बनाए हुए है। इस मंदिर में काँच की कलात्मक एव रंग बिरंगी जड़ाई होने के कारण इस मंदिर को ‘काँच मंदिर’ के नाम से भी पुकारा जाता है। मंदिर के श्रृंगार एवं मूल गम्भारे वाले कक्ष पर गोलाकार गुम्बज भी बना हुआ है।