श्री नाकोड़ा जैन तीर्थ में मूल श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर होने के कारण यह श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर के नाम से जनप्रिय बना हुआ है। नाकोड़ा जैन तीर्थ का जनश्रुतियो के आधार पर प्राचीन ऐतिहासिक सम्बंध ईसा की तीसरी शताब्दी से पूर्व का रहा है। उस समय नाकोड़ा वीरमपुर के नाम से प्रख्यात था। जैन धर्मावलम्बियों के आठवें तीर्थन्कर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी उस समय के मूलनायक रहे जो वि.सं. 909 में यहां चौबीसवें जैन तीर्थन्कर श्री महावीर स्वामी के मूलनायक होने से पूर्व रहे। मूल नायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के मंदिर का समय-समय पर जिर्णोंद्वार होने के साथ राजा सम्प्रति ने इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाकर विक्रम पूर्व 189 में प्रतिष्ठा करवाई। इसके बाद वि.सं. 35, 62, 412 एवं 813 में इस श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के मंदिर का जीर्णोद्वार होने के बाद कई प्रतिष्ठाएं सम्पन्न हुई है।
वि.सं. 909 में इस मंदिर के जीर्णोद्वार होने के बाद मूलनायक के रूप में भगवान महावीर स्वामी रहें। वि.सं. 1280 में वीरमपुर (नाकोड़ा) उजड़ने के बाद वि.सं. 1313 में पुनः बसा नाकोर नगर (नाकोड़ा गांव) से श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा मिली और यहां उसकी वि.सं. 1429 द्वितीय वैषाख वदी 10 को प्रतिष्ठा हुई। जो वि.सं. 1443 वैषाख सुदी 13 को आक्रमण से उजड़ गया। वि.सं. 1511 में रावल वीदा ने पुनः बसाया। वि.सं. 1512 में यहां नाकोड़ा गांव (प्राचीन नाकोर नगर) से श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्यामवर्णी मूर्ति मूलनायक के रूप में स्थापित होने के साथ यह तीर्थ स्थान श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ के नाम से परिचायक बन गया है। जो वर्तमान में भी इस नाम से जगत विख्यात है।
श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ भगवान का यह मंदिर नाकोड़ा तीर्थ परिसर के मध्य भाग में पूर्वाभिमुख बना हुआ है। जिसके मूल गम्भारे में श्री श्यामवर्णी श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। जिसके आजू - बाजू श्री जगवल्ल पार्श्वनाथजी एवं श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथ प्रभु की श्वेतवर्णी प्रतिमाओं की वि.सं. 2016 में आचार्य श्रीमद् विजय हिमाचलसूरीष्वरजी ने प्रतिष्ठा करवाई थी। तीनों प्रतिमाओं के पीछे जैन धर्म संस्कृति से सम्बंधित सुन्दर परिकर बने हुए है।
मंदिर के मूल गम्भारे के बाहर गूढ मण्डप में नाकोड़ा जैन तीर्थ के चमत्कारिक अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी की प्रतिमा उत्तराभिमुख एक विशाल छत्रीनुमा गोख में प्रतिष्ठित की हुई है। इस अधिष्ठायक श्री नाकोड़ा भैरवदेव की प्रतिमा के सामने बनी छत्रीनुमा गोख में दक्षिणाभिमुख किये आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरीजी की पीले पाषाण की प्रतिमा प्रतिष्ठित की हुई है। आचार्य श्री कीर्तिरन्तसूरीजी ने नाकोड़ा तीर्थ के मूल नायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति मूल गम्भारे में एवं श्री नाकोड़ा भैरवदेव का स्तूप इस मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर स्थापित किया था।
मंदिर के इस गूढ़ मण्डप के आगे छोटा सभा मण्डप, नवचौकी एवं प्रवेश द्वार पर श्रृंगार मण्डप बना हुआ है। इन सभी सभा मण्डपों का जीर्णोद्वार होने के बाद इनके स्तम्भों पर अत्यंत ही सुन्दर शिल्पकलाकृतियों में जैन धर्म संस्कृति से सम्बंधित कई प्रकार की मूर्तियां कुदेरी हुई है। मंदिर के मूल गम्भारे पर मंदिर का शिखर तीन द्वार वाले, श्री नाकोड़ा भैरव एवं आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरीजी की छत्रीनुमा गोख पर छोटे शिखर के साथ नवचौकी मण्डप पर गोलाकार गुम्बज एवं श्रृंगार मण्डप पर शिल्पकलाकृतियों से सजे गोख भाग में मंदिर में प्रवेश करने का प्रवेश द्वार दोनों और बने हाथियों के बीच बना हुआ है।
नाकोड़ा पार्श्वनाथ के इस मंदिर परिसर में दक्षिण की ओर भगवान महावीर स्वामी का मंदिर जिसमें श्री सम्भवनाथ, श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा आजू-बाजू में विराजित है एवं इसी मंदिर के बाहर की तरफ एक बाजू में गौतमस्वामी एवं दूसरे बाजू में के.सी. गणधर स्वामी विराजित हैं। इसी मंदिर के पास श्री श्यामला पार्श्वनाथ प्रभु की साल है एवं उत्तर की तरफ भगवान श्री सीमंधर स्वामी का मंदिर जिसमें श्री चन्द्रप्रभु भगवान, श्री विमलनाथ भगवान की प्रतिमा आजू-बाजू में विराजित है एवं इसी मंदिर के बाहर की तरफ एक बाजू में श्री नेमीनाथ भगवान एवं दूसरे बाजू में श्री शांतिनाथ भगवान विराजित है। इसी मंदिर के पास मंदिर में सेवा पूजा करने वालों के लिए केसर चन्दन घोटने की केसर साल बनी हुई है। केसर घोटने के स्थान पर एक गोख में भगवान श्री पार्श्वयक्ष की सपरिवार लाल रंग की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन होते हैं , जिसके पिछवाड़े में भक्तामर पट्टशाला बनी हुई हैं।
नाकोड़ा पार्श्वनाथ के इस मंदिर परिसर में, दक्षिण की ओर श्री श्यामला पार्श्वनाथ प्रभु की साल व पंचतीर्थी मंदिर एवं उत्तर की तरफ मंदिर में सेवा पूजा करने वालो के लिये केसर चन्दर घोटने की केसर साल बनी हुई है। केसर घोटने के स्थान पर एक गोख में भगवान श्री गणेशजी की सपरिवार लाल रंग की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन होते है। जिसके पिछवाड़े में मंदिर में सेवा पूजा करने आने वाले भक्तो के नहाने की व्यवस्था है। केसर साल के एक पक्ष में कई जैन तिर्थन्करों सहित देवी - देवताओं की प्रतिमाएं विद्यमान है।
श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ प्रभु के इस मंदिर परिसर के विभिन्न भागों में पन्द्रहवी शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दीे तक कई प्रकार के शिलालेख विद्यमान है। तीर्थ के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु एवं अधिष्ठायक श्री नाकोड़ा भैरव देव जी के दर्शन पूजा आदि करने के लिये श्रद्धालू भक्तो का यहां बराबर तांता लगा रहता है। भगवान महावीर स्वामी का मंदिर जिसमें श्री सम्भवनाथ, श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा आजू-बाजू में विराजित है एवं इसी मंदिर के बाहर की तरफ एक बाजू में गौतम स्वामी एवं दूसरे बाजू में श्री के.सी. गणधर स्वामी विराजित हैं। भगवान श्री सीमंधर स्वामी का मंदिर जिसमें श्रीचन्द्रप्रभु भगवान, श्री विमलनाथ भगवान की प्रतिमा आजू-बाजू में विराजित है एवं इसी मंदिर के बाहर की तरफ एक बाजू में श्री नेमिनाथ भगवान एवं दूसरे बाजू में श्री शांतिनाथ भगवान विराजित हैं।