वि.सं. 1512 के आसपास जब नाकोड़ा नगर (नाकोड़ा गांव सिणधरी के पास) के कालीकद्र (नागद्रह) तालाब से श्री भैरवदेवजी के स्वप्न संकेतानुसार निकली श्यामवर्णी श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति को वीरमपुर में स्थापित की गई। इस मूर्ति को नाकोर नगर से आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी अपने सिर पर रखकर वीरमपुर लाते समय श्री भैरवदेवजी स्वयं बाल रूप धारण करते हुए नाचते हुए साथ पधारे। तब आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी ने श्री भैरवदेवजी की नाकोड़ा के मूल श्री पार्श्वनाथजी मंदिर के प्रवेश द्दार के बाहर दाहिनी ओर के गोख में स्तूप (पिण्डाकार स्वरूप) बनाकर स्थापित कर दिया।
नाकोड़ा में श्री भैरवदेवजी का पिण्डाकार स्वरूप वि.सं. 1512 से लेकर वि.सं. 1958 तक रहा। जब जैन साध्वी श्री सुन्दर श्रीजी को श्री भैरवदेवजी ने स्वप्न मे जैन तीर्थ नाकोड़ा की यात्रा करने और जीर्णोद्दार करवाने का स्वप्न संकेत दिया। साध्वीजी ने तीर्थ का जीर्णोद्दार करवाया। अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी ने अपने पिण्डाकार स्वरूप को श्री पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर मे स्थापित करने का साध्वी श्रीजी को स्वप्न संकेत दिया। साध्वी जी ने मंदिर के बाहर स्थापित श्री भैरवदेवजी के पिण्डाकार बने स्तूप का उत्थापन कर उसे मंदिर के गूढ़ मंडप के दाहिने कक्ष में स्थापित कर दिया। मंदिर के बाहर से श्री भैरवदेवजी का स्तूप स्थान (वीर स्थान) खाली होने पर साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने वीर का स्थान खाली नही रहे इसलिए श्री हनुमानजी की मूर्ति गोख में स्थापित कर दी। तब से यह स्थल ‘श्री हनुमाजी का गोख’ से धार्मिक आस्था का प्रतीक बना हुआ है।
श्री हनुमानजी की मूर्ति पूर्वाभिमुख एक छतरीनुमा गोख में प्रतिष्ठित है। श्री हनुमान जी की खड़ी इस प्रतिमा के एक हाथ मे गदा हैं तो दूसरे उठे हाथ पर संजीवनी बूटी वाला पहाड़ है। एक पाँव से दुष्ट राक्षक को दबाए हुए है। इस धार्मिक स्थल की पूर्ण रूप से देखभाल श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ ट्रस्ट मण्डल मेवानगर (नाकोड़ा) की तरफ से की जा रही है