श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथजी के मूल मंदिर के ऊपरी भाग पर प्राचीन एवं बारीक शिल्पकलाकृतियां करे अपनी पाषाण शिलाओं में समेटे हुए प्रथम जैन तीर्थन्कर श्री आदिनाथ प्रभु का जैन मंदिर बना हुआ है। जिसका निर्माण श्राविका लांछी बाई ( सुश्रावक संघपति मालाशाह संखवाल - संखलेचा की विधवा बहन) ने वि.सं. 1512 से पूर्व अपनी पडोसिन सहेलियो के ताने पर बनाया था। इस सम्बंध में बताया जाता है कि लांछी बाई अपने पड़ोसी महिला सहेलियो के साथ वीरमपुर के तालाब पर कपड़े धोने गई। कपड़े धोने के बाद लांछी बाई ने पडोसिन महिलाओ को वापिस घर चलाने की उतावल के साथ आग्रह किया। लेकिन अन्य महिलाओं द्वारा पूरे कपड़े नही धोने के कारण देर हो रही थी। लेकिन लांछी बाई बार - बार महिलाओं को घर चलने का आग्रह करती रही। इस पर महिलाओं ने लांछी बाई को कहा कि ऐसी उतावल क्यों कर रही हो ? कही जैन मंदिर की नींव रखनी हैं क्या ? दूसरी महिला बोली 'पैसे वाले घराने की है, जाते ही मंदिर बनवाएगी।'
लांछी बाई को महिलाओ का यह ताना चुभा, घर आते ही वह अपने भाई संघपति मालाशाह संखवाल (संखलेचा) के पास गई और तत्काल जैन मंदिर बनाने की बात कही। आखिर लांछी बाई के आग्रह पर इनके भाई मालाशाह ने उनकी तरफ से मंदिर बनाकर उसमें मूलनायक के रूप 13 वें जैन तीर्थन्कर श्री विमलनाथजी की मूर्ति वि.सं. 1512 में श्री हेमविजलसूरी जी के करकमलो से प्रतिष्ठित करवा दी। तब से यह जैन मंदिर 'श्री विमलनाथजी एवं लांछी बाई मंदिर' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त करने लगा। मंदिर के वि.सं. 1512 में निर्माण होने से वि.सं. 1667 तक मंदिर में कई निर्माण कार्य होने सम्बंधी शिलालेख विद्यमान है। तब तक यह मंदिर श्री विमलनाथजी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध रहा।
इस मंदिर के मूलनायक भगवान श्री विमलनाथजी की मूर्ति के सम्भवतः खंडित होने आदि अन्य कारणों से उसके स्थान पर प्रथम तीर्थन्कर श्री आदिनाथ भगवान की मूर्ति स्थापित होने पर यह मंदिर तब से वर्तमान ‘श्री आदिनाथजी का मंदिर’ एवं ‘लांछी बाई मंदिर’ के नाम से आज जन-जन की आस्था का धार्मिक स्थल बना हुआ है। मंदिर उत्तराभिमुख है और उसमें श्रृंगार मंडप, नवचौकी, सभा मंडप, मूढ़ मंडप, मूल गम्भारा बना हुआ है। मूलनायक श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा के आजू-बाजू श्री चन्द्रप्रभजी एवं श्री पदमप्रभजी की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित है। मंदिर के सभा मंडप में अन्य कई प्राचीन जैन प्रतिमाओं के अतिरिक्त परिकर सहित दो वि.सं. 1203 के शिलालेखों वाली काउस्सग प्रतिमाएं विद्यमान है।
श्री आदिनाथजी भगवान आदि के स्तम्भो पर भी शिल्पकलाकृतियो के रूप में जैन धार्मिक संस्कृति से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की मूर्तियों को कुरेदा जा रहा है। मंदिर के सभा मंडप में मूलनायक श्री आदिनाथ भगवान की मूर्ति की तरफ मुख किये गजसवारी पर श्री आदिनाथ भगवान की माता मोरा देवी की मूर्ति अपनी धार्मिक महत्ता के साथ प्राचीनता का परिचय दे रही है।
श्री आदिनाथजी के इस मंदिर के उत्तराभिमुख प्रवेश द्वार की बजाय श्री पार्श्वनाथ प्रभु के मंदिर के शिखर के पीछे बनी दोनो ओर की सीढियां चढकर दर्शनार्थी प्रवेश करते है। इस मंदिर परिसर में मंदिर के श्रृंगार मंडप में श्री पुण्डरीक स्वामी का मंदिर, श्री चौमुखी मंदिर, भूमिगृह, श्री आदिनाथ भगवान की चरण पादुका छतरी आदि धार्मिक स्थल बने हुए है