नाकोड़ा जैन तीर्थ में सोलहवें जैन तीर्थन्कर श्री शांतिनाथजी का मंदिर तीर्थ के मुख्य प्रवेश द्वार सूरज पोल के आंतरिक भाग मे पहला मंदिर है। जो उत्तराभिमुख आधुनिक श्वेत संगमरमर पाषाण की वस्तुकला से निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण वी. सं. 1518 में संखवाल (संखलेचा) गोत्र के संघपति मालाशाह ने अपनी माता केल्हण देवी की हार्दिक इच्छा पर निर्मित करवाया था। जिसकी प्रतिष्ठा भी वी. सं. 1518 ज्येष्ठ सुदी 54 में जैसलमेर ज्ञान भंडार के संस्थापक श्री जिनभद्रसूरीजी के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरीजी से करवाई। श्री शांतिनाथजी मंदिर के निर्माण के सम्बंध में बताया जाता है। कि श्रेष्ठि केल्हशाह ;आप आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी के भ्राता थेद्ध की पत्नी केल्हण देवी नाकोड़ा के श्री पार्श्वनाथ प्रभु के मंदिर दर्शन करने अपनी पड़ोसी महिलाओं के साथ गई। वह विधिपूर्वक श्री पार्श्वनाथ भगवान के दर्शन वन्दन कर मंदिर को निहार रही थी। मंदिर के शिखर को देखते ही इनका चेहरा मुर्झाने लगा। पास खड़ी पड़ोसी महिला ने देख लिया और पूछा ' बहन ! इतनी बारिकी से मंदिर मे क्या निहार रही हो ? क्या मंदिर में कुछ कमी या त्रुटी है ?' केल्हण देवी बोली ‘ऐसा कुछ भी नहीं है। यदि मंदिर का शिखर ऊँचा होता तो इस मंदिर की शोभा कुछ और ही होती ।' इस पर पड़ोसी महिला ने कहा ‘यदि ऐसी ही आपकी भावना है तो आप क्यों नहीं ऊँचे शिखर वाला मंदिर बनवा देती ?‘ कल्हणदेवी अपनी पडोसिन महिला के इन शब्दों पर कुछ उदास होकर घर आई। श्रेष्ठि केल्हाशाह की धर्मपत्नी केल्हण देवी घर आई और बिना किसी को कुछ बताए उदास भाव से बैठ गई। अपनी माता को उदास देखकर संघपति मालाशाह ने इसका कारण पूछा तो उसने मंदिर में पडोसिन महिला से हुई बातचीत की चर्चा करते हुए नाकोड़ा तीर्थ में ऊँचे शिखर वाला मंदिर बनाने की बात बताई। संघपति मालाशाह ने अपनी माता की इच्छा को पूर्ण करने की हामी भर दी। लेकिन ऊँचे शिखर वाला मंदिर बनाने के लिए इनकी आर्थिक क्षमता नहीं थी। अपने मन में मंदिर बनाने का दृढ़ संकल्प करतें हुए तेले का तप शुरू कर दिया। इधर इनकी माता ने शीघ्र ऊँचे शिखर वाला मंदिर बने इसलिए इन्होंने भी तेले का तप शुरू कर दिया। माँ . बेटे द्वारा अन्तर्मन से शुभ कार्य करने के लिए की गई तपस्या से नाकोड़ा अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी प्रसन्न हुए और मंदिर बनाने के लिए अमूक स्थल को खोदने का संकेत दिया। भूमि खोदी गई। उसमें पारसमणि मिलने के बाद संघपति मालाशाह ने अपनी माता केल्हण देवी की इच्छानुसार ऊँचे शिखर वाला मंदिर बना दिया। जिसमें श्री शांतिनाथ भगवान की मूलनायक रूप में मूर्ति स्थापित कर दी। तबसे यह मंदिर श्री शांतिनाथ का मंदिर एवं संघपति मालाशाह द्वारा निर्मित करवाने के कारण ‘मालाशाह मंदिर’ के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। श्री शांतिनाथ जी का मंदिर बनने के बाद इसकी प्रतिष्ठा पर संघपति मालाशाह संखवाल ( संखलेचा ) की माता केल्हण देवी से अपनी पड़ोसी महिला को सोने की जिव्हा बनाकर आदर व मान - सम्मान के साथ भेंट की। श्री शांतिनाथजी का यह मंदिर वी. सं. 1518 से लेकर वी. सं. 1910 तक एवं बाद में इसी मंदिर के मूलनायक प्राचीन प्रतिमा के स्थान पर किसी कारणवश श्री शांतिनाथजी की नई प्रतिमा वी. सं.1910 माघ सुदि 5  गुरूवार को श्री जिनक्षमासूरीजी के पट्टधर श्री जिनपदमसूरीजी द्वारा प्रतिष्ठित करवाने के बाद भी यह मंदिर ‘श्री शांतिनाथजी का मंदिर’ एवं ‘मालाशाह मंदिर’ के नाम से अपनी पहचान बनाए हुए है। इस मंदिर में वी. सं. 1409, 1524, 1525, 1589, 1614, 1666, 1684, 1910, 2008, 2016  एवं 2046 के लेख विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कार्यो को सम्पन्न करवाने के लिए कुरेदे हुए विद्यमान है। नाकोड़़ा तीर्थ में बने अन्य जैन मंदिरों में श्री शांतिनाथजी का मंदिर सबसे बड़ा, विशाल, ऊँचे शिखर वाला है। जिसके प्रवेश द्वार को आधुनिक श्वेत संगमरमर के पाषाणों पर कुरेदी शिल्पकला से सजाया संवारा गया है। वहाँ मंदिर का श्रृंगार मंडप, नवचौकी, सभा मंडप आदि के स्तम्भ, छत आदि तो शिल्पकलाकृतियों का अनोखा खजाना बना हुआ है। यहाँ उत्कीर्ण मूर्तियों की सुन्दरता एवं तोरणो की बनावट ने मंदिर के शिल्प सौन्दर्य में अभिवृद्धि कर दी है। मंदिर के मूल गम्भारे मे मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा के आजू.बाजू श्री सुपार्श्वनाथजी एवं श्री चन्द्रप्रभजी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की हुई है। मंदिर के गूढ़ मंडप के एक त्रिगोख में श्री कीर्तिरत्नसूरिजी, श्री जिनदत्तसूरिजी प्रतिमा व श्री जिनचन्द्रसूरी जी चरण पादुका एवं इनके सामने के त्रिगोख में श्री ऋषभदेवजी, श्री वासुपूज्यजी की प्रतिमा व श्री जिनदत्तसूरि जी के चरण प्रतिष्ठित है। मंदिर के सभा मण्डप में दो श्री नेमिनाथ भगवान की काउस्सग प्रतिमाओं के अतिरिक्त कई जैन प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की हुई है। मंदिर के पूर्व की ओर बनी विशाल साल में श्री शांतिनाथजी एवं पश्चिम की ओर बनी शाल में श्री पार्श्वनाथजी के जीवन पर आधारित भवों की पाषाणों पर कुरेदकर मूर्ति स्वरूप में चित्र बनाए गए है। इसी मंदिर के चारों किनारों पर चार देवकुलिका भी है। जिसमें श्री ऋषभदेवजी, श्री नेमिनाथजी, श्री पार्श्वनाथजी एवं श्री महावीर स्वामी की प्रतिमाएं त्रिगडे के साथ प्रतिष्ठित की हुई है। जिसकी प्रतिष्ठा वी. सं. 2016 माघ शुक्ला 14 गुरूवार एवं 2029 माघ शुक्ला 13 आचार्य श्रीमद्विजय हिमाचलसूरीश्वरजी ने करवाई। श्री शांतिनाथ प्रभु के इस मंदिर के पीछे मंदिर परिसर में ही स्वतंत्र रूप से श्री सिद्धचक्र का आधुनिक शिल्पशैली के साथ मंदिर बना हुआ है। श्री शांतिनाथजी के इस मंदिर में नाकोड़ा परिसर के उत्तराभिमुख प्रवेश द्वार के अतिरिक्त तीर्थ के मूल श्री पार्श्वनाथजी के मंदिर से पूर्व की ओर से भी दर्शनार्थ जाया जा सकता है। वैसे इस श्री शांतिनाथ भगवान के मंदिर में प्रथम दर्शन करने के बाद इसी मंदिर परिसर में पश्चिमी की ओर बने श्री पार्श्वनाथजी के मंदिर दर्शन करने हेतु जाने की समुचित व्यवस्था है।