जैन तीर्थ नाकोडा क्षेत्र की परिधि में तीर्थ के मुख्य प्रवेश द्वार सूरज पोल के आगे पूर्व की ओर आई दादा श्री जिनदत्तसूरिजी दादावाडी के नीचे एक छोटी भाखरी पर ‘अष्ट मंगल कलश’ श्वेत संगमरमर के पाषाणों से निर्माण किया गया है। इसका निर्माण भगवान महावीर 2500 वां निर्माण महोत्सव वर्श 1975 - 76 (वि.सं 2032-33) के निर्णयानुसार श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर (नाकोड़ा) द्वारा करवाया गया है जो भाखरी पर बने समचौरस चबूतरे पर खड़ा है। इस मंगल कलश के लिए बनाए गए चबूतरे के चारो तरफ 64 विभिन्न नृत्य मुद्राओ में अप्सराओं की मूर्तियों कुरेदी गई है।

 

संगमरमर के श्वेत पाषाणों वाले इस चबूतरे के चारो तरफ मध्य भाग में धर्मचक्र की आकृति बनाई गई है । चबूतरे पर 51 फीट ऊँचा मंगल कलश निर्मित किया गया है। जिस पर नीचे से ऊपर की ओर सोलह विद्या देवियों मय पुरूष दत्ता, बारह राशियाँ, दस दिक्कपाल, नवगृह, अष्ट मंगल, त्रिभुजाधारी कलश एवं उस पर श्रीफल की आकृति बनी गई है। इसके चारों किनारों पर कमल के फूल की फैली गोलाकार कुण्ड स्वरूप पंखुडियों के बीच नृत्य मुद्रा में देवी की खड़ी प्रतिमा लगाई जानी है। सर्वमंगलकारी यह अष्टमंगल जमीन तल पर बने दादाश्री जिनदत्तसूरिजी पोल से 85 सीढियां चढने पर सीढियों के दक्षिण की तरफ छोटी टेकरी पर बना हुआ है। इसके दर्शन करने के साथ इस क्षेत्र से जसोल - बालोतरा सड़क मार्ग पर बने धार्मिक एवं अन्य भवन, श्री कीर्तिरत्नसूरिजी दादावाड़ी, आचार्य श्री लक्ष्मीसूरिजी गुरू मंदिर, नवनिर्मित समवसरण मंदिर, श्री काला भैरवजी मंदिर, सम्पूर्ण नाकोड़ा तीर्थ के साथ इसके ऊपर बनी दादाश्री जिनदत्तसूरिजी दादावाड़ी का आनन्द के साथ अवलोकन किया जा सकता है।