नाकोड़ा तीर्थोद्वारिका प्रवर्तिनी साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने जब नाकोड़ा तीर्थ के जीर्णोंद्दार करवाने के बाद में वि.सं. 1991 माघ शुक्ल 13 को अपने अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी के पट्टालंकार अनुयोगाचार्यश्री हिम्मतविजयजी (आचार्य श्रीमद्विजय हिमाचल समरीश्वरजी) से अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा करवाई उस समय आपके नाकोड़ा के मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी जैन मंदिर के दक्षिण की तरफ एक विशाल साल का निर्माण करवाया। इस साल के मध्य भाग के जैन धर्म के तैबीसवे तीर्थन्कर सप्तफण धारी श्यातवर्णी श्री पार्श्वनाथ भगवान की छतरी में मूर्ति प्रतिष्ठित होने के कारण यह साल आजकल नाकोड़ा तीर्थ की श्री श्यामला पार्श्वनाथजी साल मंदिर के रूप में दर्शनीय बनी हुई है।
श्री श्यामला पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा वि.सं. 2016 माघ शुक्ल 14 गुरूवार को आचार्य श्रीमद्विजय हिमाचल सूरीश्वरजी म.सा. ने भव्य धार्मिक समारोह के बीच सम्पन्न करवाई। इस अवसर पर इस मंदिर परिसर में श्री सरस्वती देवी की खड़ी आदमकद प्रतिमा की भी आप श्रीजी ने प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई। वि.सं. 1991 माघ शुक्ल 13 को नाकोड़ा में आयोजित भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा के अवसर पर अनुयोगाचार्य पन्यास श्री हिम्मतविजयजी (आचार्य श्रीविजय हिमाचलसूरीजी) ने श्री चक्रेश्वरी देवी, श्रीपद्मावती देवी, अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी की मूर्तियों के साथ गुरणी श्री स्वरूप श्रीजी एवं गुरणी सणगारश्रीजी की चरण पादुकाएं एवं श्री मणिभद्र जी भी इस मंदिर के परिसर में प्रतिष्ठित की।
वर्तमान में श्री श्यामला पार्श्वनाथजी साल मंदिर परिसर के मध्य भाग में श्री श्यामला पार्श्वनाथजी की छतरी में भगवान श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्यामावर्णी सप्तफणी प्रतिमा प्रतिष्ठित की हुई है। जिसके आजू-बाजू की पद्मावती देवी एवं श्री चक्रेश्वर देवी की छतरियां बनी हुई है। श्री पद्मावती देवी की छतरी के पूर्व की ओर एक साल - बरामदे में दो विषाल छतरियों में एक मे तीर्थोद्दारिका प्रवर्तिनी साध्वी श्री सुन्दरजी की प्रतिमा वि.सं. 1996 कार्तिक कृष्ण पक्ष 8 को प्रतिष्ठित की हुई है। इस पर वि.सं. 2011 मिगसर 7 को छतरी का निर्माण करवाने सम्बंधी शिलालेख विद्यमान है। इस छतरी के पास ही श्री सरस्वती की छतरी बनी हुई है। श्री पद्मावती देवी एवं श्री श्यामला पार्श्वनाथ छतरी के बीच में पीछे की प्राचीर के एक गोख में श्री सरस्वती की प्राचीन छोटी प्रतिमा विद्यमान है।
इस श्री श्यामला पार्श्वनाथजी साल मंदिर में श्री चक्रेश्वरी देवी छतरी के पश्चिम की ओर बनी साल में तैबीस जैन तीर्थन्कर प्रतिमाएं विराजमान की हुई है। जिसमें दक्षिण की प्राचीर में उत्तर की तरफ मुख किये श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा के आजू - बाजू श्री सुमतिनाथजी की एवं श्री पार्श्वनाथजी व श्री शांतिनाथजी की एक - एक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इसके अतिरिक्त इस साल की पश्चिम प्राचीर की पावट पर पूर्वाभिमुख किये ग्यारह जैन तीर्थन्कर प्रतिमाएं प्रतिष्ठित है। जिसके मध्य भाग में श्री पार्श्वनाथजी की मूर्ति स्थापित है। इसी प्रकार उत्तर की प्राचीर की पावट पर दक्षिणाभिमुख किये पाँच जैन तीर्थन्कर प्रतिमाएं प्रतिष्ठित है। श्री श्यामला पार्श्वनाथजी एवं श्री चक्रेश्वरी देवी छतरी के बीच की पीछे की प्राचीर के गोख में श्री हितविजयजी की मूर्ति व साध्वी श्री स्वरूपश्रीजी व साध्वी श्री सणगारश्रीजी के चरण स्थापित है। इसके ऊपर संगमरमर के तीर्थ पट्ट लगे हुए है।
इस श्री श्यामला पार्श्वनाथजी साल मंदिर एवं नाकोड़ा तीर्थ के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर के बीच विशाल खुला चौक है। जिसमें चार भूमिगृह होने की जानकारी दी जाती है। इस चार भूमि गृहों में से दो का आज दिन तक पता नहीं लगा है। जबकि दो भूमिगृह में प्रतिष्ठित जैन प्रतिमाओं को बाहर निकालकर नाकोड़ा तीर्थ के अन्य धार्मिक स्थलों पर प्रतिष्ठित किया है। इसमें से कुछ प्रतिमाओं को इस साल मंदिर के पूर्व की ओर नया पंचतीर्थी मंदिर बनाकर उसमें प्रतिष्ठित किया है। इस खुले चौक में मिले दो भूमिगृहो पर वि.सं. 1667 एवं 1864 में निर्माण करवाने के शिलालेख विद्यमान थें। अब इन दोनो भूमिगृहो में से मूर्तियों को बाहर निकालकर बन्द कर दिया है। ये भूमिगृह मंदिर में प्रतिष्ठित प्रतिमाओ की आक्रमणकारियों से सुरक्षा करने के लिये निर्मित करवाये गये थे। इसी खुले चौक से पश्चिम में श्री आदिश्वर (श्री आदिनाथ जी) एवं पूर्व में श्री शांतिनाथ भगवान के मंदिर की ओर जाने की समुचित व्यवस्था है।