जैन तीर्थ नाकोड़ा में किसी नये कार्य का शुभारम्भ हो या फिर कार्य शांतिपूर्ण सम्पन्न होने पर सबसे पहले श्री नाकोड़ा अधिष्ठायक भैरवदेवजी (मूल मंदिर में स्थापित पीली श्री भैरवदेवजी की प्रतिमा) के साथ यहां बने श्री भैरव बांध (बंधे) पर स्थापित श्री काला (श्री कालिया) भैरवदेवजी की सबसे पहले पूजा अर्चना की जाती है। धोक देने के साथ प्रसादी चढाई जाती है। जिससे किया जाने वाला कार्य सानन्द सफलता के साथ शांतिपूर्ण सम्पन्न हो।

 

नाकोड़ा में साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी द्वारा नाकोड़ा तीर्थ के जीर्णोद्वार का कार्य एवं अन्य व्यवस्थाओं को सम्भालने के लिये व्यवस्थापक के रूप में तखतगढ के श्री भीमाजी देवाजी को जैन दीक्षा लेने की अपेक्षा तीर्थ की देखभाल के लिये वि.सं. 1982 में रखा। जिन्होने जीवन के अंतिम समय तक इस तीर्थ की सेवा व्यवस्थापक (मैनेजर) एवं ट्रस्टी के रूप में दी और अंतिम सांस भी नाकोड़ा में ही ली। ऐसे सेवाभावी श्री भीमाजी देवाजी ने वि.सं. 2008 में नाकोड़ा जैन तीर्थ के कुओं में पानी की कमी नही आये इसके लिये श्री भैरव बांध (बंधे) का निर्माण वि.सं. 2008 में करवाया। इस बंधे वाले स्थान पर ही श्री काला भैरवजी (श्री कालिया भैरवदेवजी) की प्रतिमा बांध बनाने से पूर्व खुले आकाश के नीचे साधारण चबूतरे पर विद्यमान थी। मूर्ति काले पाषाण की होने के कारण आमजन इसे श्री कालिया भैरवजी के नाम से सम्बोधित करते है। जब बांध बना तब इस मूर्ति को पक्के चबूतरे पर बनाये एक आले (गोख) में, फिर इसके बाद एक विशाल चबूतरे पर बनी संगमरमर के पाषाणो की छतरी में और अब तो  इस स्थान पर एक विशालकाय मंदिर में  विराजमान कर रखा है।

 

श्री काला भैरवदेव (श्री कालिया भैरवजी) का यह स्थान नाकोड़ा तीर्थ परिसर में तीर्थ के मुख्य प्रवेश द्वार सूरजपोल के बाहरी भाग में जहां वर्तमान में नवनिर्मित भव्य समवसरण मंदिर के दक्षिण की ओट में पहाडियों के नीचे बने श्री भैरवबांध (बंधे) की सुरक्षा पाल पर बनी श्री कालिया भैरवदेवजी की दक्षिणाभिमुख छतरी के रूप में स्थित है। इसके दर्शन करने के लिये जमीन तल से संगमरमर के पाशाणो की बनी अठाईस सीढियां चढनी पडती है। विशाल समचौरस चबूतरे के बीच बनी छतरी में श्री भैरवदेवजी की खड़ी काली मूर्ति स्थापित है। जिसके दर्शन, वन्दन करने से मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है। इसके पास ही आचार्य श्री लक्ष्मीसूरिजी का गुरू मंदिर बना हुआ है एवं तपस्वी साध्वी श्री दिव्यप्रभाश्रीजी की चरण पादुकाएं स्थापित छतरी बनी हुई है।