श्री शांतिनाथजी के मंदिर के मूल ऊँचे शिखर के पीछे दक्षिण की तरफ उत्तराभिमुख किये श्री सिद्धचक्र जैन मंदिर का निर्माण करवाने के लिये वि.सं. 2038 दिनांक 16 नवम्बर 1981 में नींव रखी गई। श्री सिद्धचक्र मंदिर बनने के बाद इसकी प्रतिष्ठा आचार्य श्री गुणरत्न सूरीश्वरजी एवं आचार्य श्रीमद्विजय लक्ष्मीसूरीश्वरजी द्वारा वि.सं. 2046 वैशाख सुदी 6 तदनुसार 11 मई 1989 को करवाई।
श्री सिद्धचक्र जैन मंदिर आधुनिक शिल्पशैली से सुन्दर एवं कलात्मक बनाया गया है। जो सोलह स्तम्भों को चौबीस तोरणों से जोड़कर बनाया गया है। जिसका सम्पूर्ण आंतरिक भाग खुला है। जिसके मध्य भाग में श्री सिद्धचक्रजी की छतरी बनी हुई है। जिसमें उत्तराभिमुख श्री सिद्धप्रभु की लाल पाषाण की पूर्वाभिमुख श्री जैनाचार्यजी की पीले दक्षिणीभिमुख श्री जैन उपाध्यायजी की श्वेत एवं पश्चिमाभिमुख श्री जैन साधुजी की श्याम पाषाण की मूर्ति प्रतिष्ठित की हुई है। इन प्रतिमाओं के ऊपरी भाग पर श्री सिद्धप्रभु पर श्री महावीर स्वामीजी, आचार्य पर श्री ऋषभदेवजी, उपाध्याय पर श्री चन्द्रानन्द जी एवं साधु पर श्री वारीसेनजी की मूर्ति स्थापित की हुई है। इस छतरी के ऊपरी भाग पर गोलाकार गुम्बज बना हुआ है।
श्री सिद्धचक्रजी की इस मंदिर के पूर्व की ओर पश्चिमाभिमुख की तरफ हाथ जोड़े श्री पाल राजा एवं ठीक इसके सामने पश्चिम की ओर पूर्वाभिमुख किये मैना सुन्दरी की मूर्ति हाथो में पूजा कलश एवं पुष्पमाला लिये खड़ी है। इन दोनो प्रतिमाओं की छत पर भी छोटे गोलाकार गुम्बज श्री सिद्धचक्रजी मंदिर की शोभा एवं सुन्दरता बढाने के लिये बनाये गये है। इस श्री सिऋचक्र जैन मंदिर की पश्चिमी प्राचीर पर श्रीपाल मैना सुन्दरी से जीवन से सम्बंधित सत्रह चित्र पट्टो में कुल छियालिस चित्र दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किए रहते है।