नाकोड़ा जैन तीर्थ से जसोल - बालोतरा की ओर जाने वाले मुख्य पक्के सड़क मार्ग पर करीबन दो किलोमीटर दूरी श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ ज्ञानमंदिर परिसर में श्री नाकोड़ा ज्ञान मंदिर का श्री चतुर्मुख जिन प्रसाद सम्पूर्ण रूप से संगमरमर के श्वेत पाषाणों का गोलाकार रूप में बना हुआ है। जिसका निर्माण इस ज्ञानशाला में जैन धार्मिक पढाई करने वाले बालको के दर्शन, पूजा एवं अन्य धार्मिक क्रियाएँ सम्पन्न करने के लिए वि.सं. 2052 - 55 के बीच में बनाया गया है।

 

इस चतुर्मुख श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ ज्ञान मंदिर के मूलनायक श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ की प्रतिमा पूर्वाभिमुख प्रतिष्ठित है। जबकि श्री श्रेयांसनाथ जी की दक्षिणाभिमुख, श्री शीतलनाथ जी की पश्चिमाभिमुख एवं श्री महावीर स्वामी जी की उत्तराभिमुख प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इन प्रतिमाओं के मूल गम्भारे के बाहर मंदिर के चारों प्रवेश द्वार के आगे मंडप निर्मित है। पूर्वाभिमुख मंदिर के द्वार के आगे उत्तराभिमुख किए श्री भैरवदेवजी (पीली) व श्री पार्श्वयज्ञजी एवं इनके सामने दक्षिणाभिमुख किए श्री पद्मावती देवी व श्री चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की हुई है। इन चारो प्रतिमाओं की जब वि.सं. 2062 में इसके समीप बने श्री जैन आराधना मंदिर की प्रतिष्ठा हुई, तब यहाँ से उत्थापन कर वहाँ विराजमान कर दिया है।

 

इस चतुर्मुख (चौमुखी) मंदिर की सभी मूर्तियों की प्रतिष्ठा वि.सं. 2055 फाल्गुन शुक्ला 6 रविवार को आचार्य श्री अरिहन्तसिद्धसूरिजी व पन्यास श्री रत्नाकरविजयजी गणिवर्य ने करवाई। इस मंदिर के पूर्व की ओर श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ ज्ञान मंदिर एवं शिक्षण संस्था का आवासी भवन एवं पश्चिम में मंदिर के पीछे श्री जैन आराधना मंदिर बना हुआ है ।