जैन तीर्थ नाकोड़ा वर्तमान में बाड़मेर जिले की पंचायत समिति बालोतरा की ग्राम पंचायत मेवानगर के क्षेत्र में विद्यमान है। तीर्थ से मेवानगर मात्र दो किलोमीटर उत्तर की तरफ बसा हुआ है। मेवानगर गांववासियों का जैन तीर्थ नाकोड़ा से प्राचीन महेवा - वीरमपुर नामकरण के साथ सम्बंध रहा है। जब पन्यास श्री हिम्मतविजयजी (आचार्य श्रीमद्विजय हिमाचलसूरीष्वरजी) ने वि.सं. 1991 में नाकोडा तीर्थ के प्रवर्तिनी साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी द्वारा जीर्णोद्वार करवाने के बाद प्रतिश्ठा करवाई तब उस समय के कई षिलालेखों में मेवानगर नाकोड़ा के नाम का उल्लेख किया हैै। नाकोड़ा जैन तीर्थ की तरफ से मेवानगर गांव के विकास में सदैव सराहनीय सहयोग रहा है। इस गांव के योग्य एवं कार्यकुषल लोगो को तीर्थ के विभिन्न क्षेत्रो में काम करने के लिये रखकर रोजगार दिया जाता रहा है। यह क्रम करीबन एक सौ वर्शो से अर्थात् साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी द्वारा तीर्थ जीर्णोद्वार के समय से चलता आ रहा है। इससे पहले ता इस गांव का ऐतिहासिक सम्बंध नाकोड़ा से रहा है। वर्तमान में तीर्थ की तरफ से मेवानगर में ‘श्री नाकोड़ा भैरव राजकीय उच्च प्राथमिक विधालय’ भवन का प्याऊ निर्माण करवाया है। यहां के विधार्थियो के राश्ट्रीय पर्वो, खेलकूद प्रतियोगिता, वार्शिक उत्सव आदि पर पुरस्कार भी दिया जाता है। यहां के ग्रामीणों की चिकित्सा हेतु तीर्थ की तरफ से एलोपैथी, आयुर्वेदिक एवं होम्योपैथिक की निःषुल्क व्यवस्था भी है। प्राकृतिक विपदा अकाल आदि में मेवानगरवासियो को हर सम्भव तीर्थ द्वारा सहायता दी जाती है। मेवानगर के षहीद भंवरसिह नाकोड़ा पार्ष्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट मण्डल मेवानगर (नाकोड़ा) एवं मेवानगर के ग्रामीण के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बंध रहे इसके लिये दोनो ओर से सराहनीय प्रयास रहे है। तीर्थ मेवानगर के विकास में सदैव सकारात्मक सोच एवं सहयोग से कार्य करता रहा है।

    नाकोड़ा तीर्थ का वि.सं. 1960 मंे प्रवर्तिनी साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने जीर्णोद्वार करवाने का कार्य आरम्भ किया। जीर्णोद्वार के कार्य के साथ तीर्थ की महिमा बढाने एवं जैन धर्मावलम्बियों का तीर्थ की तरफ रूझान बढाने हेतु जोधपुर के यतिश्री जवाहरमलजी ने वि.सं. 1965 में श्री पार्ष्वनाथजी के जन्मकल्याण पोश वदी दषमी को मेले का आयोजन साध्वीश्री सुन्दरश्रीजी की सलाह एवं बालोतरा के श्रीपूज्य श्री जिन फतेन्द्रसूरिजी के सहयोग से आरम्भ किया। इस मेले के आयोजन के साथ तीर्थ की व्यवस्था को व्यवस्थित करने की बात सामने आई।
    साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने जीर्णोद्वार के साथ प्रारम्भ में वि.सं. 1961 में जोधपुर के श्री सरदारमल जी को वैतनिक व्यवस्था पर रखकर कार्य आरम्भ किया। इन्होने वि.सं. 1984 तक कार्य किया। इस बीच वि.सं. 1982 में तखतगढ के श्री भीमाजी देवाजी ने अवैतनिक मुनिम एवं ट्रस्टी के रूप में वि.सं. 2011 तक तीर्थ की व्यवस्था सम्भाली। वि.सं. 1965 में तीर्थ पर पोश वदी दसमी मेले की व्यवस्था के लिये साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी ने बालोतरा के श्री पूज्य श्री फतेन्द्रसूरिजी के सहयोग से स्थानीय समाज के आगेवान व्यक्तियों को तीर्थ की व्यवस्था सौंपी। विधान का स्वरूप बना। जो अब तक विधान में संषोधित परिवर्तन, परिवर्धन होने के साथ श्री जैन ष्वेताम्बर नाकोड़ा पार्ष्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट मण्डल, मेवानगर (नाकोड़ा) के नाम से लगातार कार्यरत है। यही ट्रस्ट मण्डल तीर्थ की समुचित व्यवस्था करता रहता है। तीर्थ के ट्रस्ट मण्डल के सहयोग हेतु विभिन्न क्षेत्रों से सलाहकार लिये जाते है जो अपनी सेवाएं ट्रस्ट मण्डल को देते रहते है। वर्तमान ट्रस्ट मण्डल का कार्यकाल तीन वर्श का है। उसके बाद विधान में निर्धारित क्षेत्रों से ट्रस्टियो का चयन - चुनाव होता है।