साहित्य के माध्यम से जैन धार्मिक ज्ञान को प्राप्त करने हेतु सन् 1978 में जैन मुनि श्री गुणरत्नविजयजी (आचार्य श्री गुणरत्नसूरीष्वरजी) के सानिध्य एवं प्रेरणा से ‘विष्व प्रकाष पत्राचार पाठ्यक्रम’ का षुभारम्भ श्री जैन ष्वेताम्बर नाकोड़ा पार्ष्वनाथ तीर्थ, मेवानगर द्वारा किया गया। इसके अन्तर्गत डाक द्वारा जैन धर्म की प्रारम्भिक जानकारी के साथ गहनता से पढने वाले छात्रों के साथ इच्छुक अजैन को पाठ़्य सामग्री भेजी जाती थी। इसी के आधार पर छात्रों की परीक्षा लेकर उन्हे जैन परिचय, जैन विषारद एवं जैन स्नातक की पदवी दी जाती रही थी । वर्श 1983 से 2004 तक 575 को जैन परिचय, 312 को जैन विषारद एवं 189 को जैन स्नातक के प्रमाण पत्र दिये गये। प्रमाण-पत्र के साथ परीक्षा पास करने वाले को नकद पुरस्कार देकर भी सम्मानित किया जाता रहा है।
    इस पत्राचार के अतिरिक्त तीर्थ द्वारा नाकोड़ा में रहने वाले विधार्थियों के लिये धार्मिक पाठषाला भी संचालित की जाती है। नाकोड़ा मंे प्रवास करने वाले साधु - साध्वियों के षिक्षण की व्यवस्था भी होती रहती है। तीर्थ की तरफ से समय - समय जैन साधु-साध्वियो की निश्रा एवं प्रेरणा से जैन धार्मिक षिविरों का आयोजन भी किया जाता है। षिक्षा के क्षेत्र में तीर्थ की तरफ से छात्रवृतियों एवं प्रतियोगी परीक्षा के लिये आर्थिक सहयोग भी देने की व्यवस्था रही है। तीर्थ की तरफ से जोधपुर एवं कोटा में जैन छात्रो के लिये छात्रावास भी चलाया जा रहा है। कई जैन संस्थाओ एवं पुस्तकालयो के लिये अर्थ सहयोग तीर्थ की तरफ से देने की व्यवस्था रही है। तीर्थ के अर्थ सहयोग पर तीर्थ के नाम पर जोधपुर में श्री नाकोड़ा पार्ष्वनाथ जैन महाविधालय संचालित हो रहा है।